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"बिल्लेसुर'—नाम का शुद्ध रूप बड़े पते से मालूम हुआ—'विल्वेश्वर' है। पुरवा डिवीज़न में, जहाँ का नाम है, लोकमत बिल्लेसुर-शब्द की ओर है। कारण, पुरवा में उक्त नाम के प्रतिष्ठित शिव हैं। अन्यत्र यह नाम न मिलेगा, इसलिए भाषातत्त्व की दृष्टि से गौरवपूर्ण है। 'बकरिहा' जहाँ का शब्द है, वहाँ 'बोकरिहा' कहते हैं। वहाँ 'बकरी' को 'बोकरी' कहते हैं। मैंने इसका हिन्दुस्तानी रूप निकाला है। 'हा' का प्रयोग हनन के अर्थ में नहीं, पालन के अर्थ में है।
बिल्लेसुर जाति के ब्राह्मण, 'तरी' के सुकुल हैं, खेमेवाले के पुत्र ख़ैयाम की तरह किसी बकरीवाले के पुत्र बकरिहा नहीं। लेकिन तरी के सुकुल को संसार पार करने की तरी नहीं मिली तब बकरी पालने का कारोबार किया। गाँववाले उक्त पदवी से अभिहित करने लगे।
हिन्दी-भाषा-साहित्य में रस का अकाल है, पर हिन्दी बोलनेवालों में नहीं; उनके जीवन में रस की गंगा-जमुना बहती है; बीसवीं-सदी साहित्य की धारा उनके पुराने जीवन में मिलती है। उदाहरण के लिए अकेला बिल्लेसुर का घराना काफ़ी है। बिल्लेसुर चार भाई आधुनिक साहित्य के चारों चरण पूरे कर देते हैं।
बिल्लेसुर के पिता का नाम मुक्ताप्रसाद था; क्यों इतना शुद्ध नाम था, मालूम नहीं; उनके पिता पंडित नहीं थे। "...(पूरा पढ़ें)
चन्द्रकान्ता सन्तति 6 बाबू देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन सन् १८९६ ई॰ में दिल्ली के भारती भाषा प्रकाशन द्वारा किया गया था।
"भूतनाथ अपना हाल कहते-कहते कुछ देर के लिए रुक गया और इसके बाद एक लम्बी साँस लेकर पुनः यों कहने लगा।
भूतनाथ-मैं अपने को कैदियों की तरह और अपने सामने अपनी ही स्त्री को सरदारी के ढंग पर बैठे हुए देखकर एक दफे घबड़ा गया और सोचने लगा कि यह क्या मामला है? मेरी स्त्री मुझे सामने ऐसी अवस्था में देखे और सिवाय मुस्कुराने के कुछ न बोले! अगर वह चाहती तो मुझे अपने पास गद्दी पर बैठा लेती, क्योंकि इस कमरे में जितने दिखाई दे रहे हैं उन सभी की वह सरदार मालूम पड़ती है-इत्यादि बातों को सोचते-सोचते मुझे क्रोध चढ़ आया और मैंने लाल आँखों से उसकी तरफ देखकर कहा, "क्या तू मेरी स्त्री वही रामदेई है जिसके लिए मैंने तरह-तरह के कष्ट उठाये और जो इस समय मुझे कैदियों की अवस्था में अपने सामने देख रही है?"..."(पूरा पढ़ें)
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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति महावीर प्रसाद द्विवेदी रचित हिंदी भाषा संबंधी हिंदी की पहली पुस्तक है जिसका प्रकाशन १९२५ ई॰ में प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा किया गया था।
"हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का पता लगाने और उसका थोड़ा भी इतिहास लिखने में बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ हैं; क्योंकि इसके लिए पतेवार सामग्री कहीं नहीं मिलती। अधिकतर अनुमान ही के आधार पर इमारत खड़ी करनी पड़ती है, और यह सबका काम नहीं। इस विषय के विवेचन में पाश्चात्य पण्डितों ने बड़ा परिश्रम किया है। उनकी खोज की बदौलत अब इतनी सामग्री इकट्ठी हो गई है कि उसकी सहायता से हिन्दी की उत्पत्ति और विकास आदि का थोड़ा-बहुत पता लग सकता है। हिन्दी की माता कौन है? मातामही कौन है? प्रमातामही कौन है? कौन कब पैदा हुई? कौन कितने दिन तक रही? हिन्दी का कुटुम्ब कितना बड़ा है? उसकी इस समय हालत क्या है? इन सब बातों का पता लगाना-और फिर ऐतिहासिक पता, ऐसा वैसा नहीं—बहुत कठिन काम है। मैक्समूलर, काल्डवेल, बीम्स और हार्नली आदि विद्वानों ने इन विषयों पर बहुत कुछ लिखा है और बहुत-सी अज्ञात बातें जानी हैं, पर खोज, विचार और अध्ययन से भाषाशास्त्र-विषयक नित नई बातें मालूम होती जाती हैं। इससे पुराने सिद्धान्तों में परिवर्तन दरकार होता है! कोई-कोई सिद्धान्त तो बिलकुल ही असत्य साबित हो जाते हैं। अतएव भाषाशास्त्र की इमारत हमेशा ही गिरती रहती है और हमेशा ही उसकी मरम्मत हुआ करती है।..."(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह प्रमाणित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- हिंदी रस गंगाधर.djvu [४२८ पृष्ठ]
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- स्कंदगुप्त – १९२८ - गुप्तकाल के अंतिम प्रसिद्ध शासक पर आधारित ऐतिहासिक नाटक।
- एक घूँट - १९२९ - हिंदी की प्रथम एकांकी।
- आकाशदीप - १९२९ - १९ कहानियों का संग्रह।
- ध्रुवस्वामिनी - १९३५ - क्लीव पति से विवाहित हिंदू स्त्री के मुक्ति की गाथा पर आधारित नाटक।
- कामायनी – १९३६ - जल-प्लावन की गाथा पर आधारित आधुनिककालीन हिंदी का सबसे लोकप्रिय महाकाव्य।
- काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध - १९३९ - ८ निबंधों का संग्रह।
- आँधी - १९५५ - ग्यारह कहानियों का संग्रह।
मोहनदास करमचन्द गाँधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, दार्शनिक, लेखक एवं पत्रकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:—
- हिन्द स्वराज्य – १९०७, गाँधी-दर्शन की पहली सैद्धांतिक पुस्तक।
- सत्य के प्रयोग - १९४८, आत्मकथा।
- रामनाम - १९४९, गाँधी के विचारों का संग्रह।
विकिस्रोत पर उपलब्ध सभी लेखकों के लिए देखें- समस्त रचनाकार अकारादि क्रम से।
आज का पाठ
"हम यह देख चुके कि जिन सुधारों का मांटेग्यू और चेम्सफोर्ड के नामों के साथ सम्बन्ध है उनकी उत्पत्ति 'दयावेश की शीघ्रता' में नहीं हुई थी। तब भी पाठक तो यह जानना ही चाहेंगे कि व्यवहार में वे कैसे रहे? भारतवासियों पर कभी कभी यह दोषारोपण किया जाता है कि वे 'प्रजातान्त्रिक' सुधारों पर काम करके प्रजातान्त्रिक शासन की व्यवस्था करने में सहयोग नहीं देते और अड़चनें उपस्थित करते हैं। यह बात अत्यन्त भ्रमोत्पादक है। सच बात तो यह है कि यह सुधार-क़ानून प्रजातान्त्रिक व्यवस्था ही नहीं है। यह मुश्किल से सम्पूर्ण जन-संख्या के २ प्रतिशत भाग को मताधिकार देता है। और इससे कार्य करने योग्य विधानात्मक मन्त्र की सृष्टि नहीं होती। इसमें जो थोड़ा सा उन्नति का भाव था भी उसे अनुदार ऐंग्लो इंडियन अफ़सरों ने और इंडिया आफ़िस ने दबा दिया है।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- सभी विषय देखें
- कुल पुस्तकें = ५०४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,४९,४९३
- प्रमाणित पृष्ठ = ११,७६६, शोधित पृष्ठ = ५०,९३१
- समस्याकारक = ४६, अशोधित = ९६,००३, रिक्त = २,५१३
- सामग्री पृष्ठ = ५,४०९, परापूर्ण पृष्ठ = ३६८५
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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