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हिंदी में कुल ५,३७८ पाठ हैं।
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जून की निर्वाचित पुस्तक
""अच्छे-अच्छे काम करते जाना" राजा ने कूड़न किसान से कहा था।
कूड़न, बुढ़ान, सरमन और कौंराई थे चार भाई। चारों सुबह जल्दी उठकर अपने खेत पर काम करने जाते। दोपहर को कूड़न की बेटी आती, पोटली में खाना लेकर।
एक दिन घर से खेत जाते समय बेटी को एक नुकीले पत्थर से ठोकर लग गई। उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपनी दरांती से उस पत्थर को उखाड़ने की कोशिश की। पर लो, उसकी दरांती तो पत्थर पर पड़ते ही लोहे से सोने में बदल गई। और फिर बदलती जाती हैं इस लम्बे किस्से की घटनाएं बड़ी तेज़ी से। पत्थर उठाकर लड़की भागी-भागी खेत पर आती है। अपने पिता और चाचाओं को सब कुछ एक सांस में बता देती है। चारों भाइयों की सांस भी अटक जाती है। जल्दी-जल्दी सब घर लौटते हैं। उन्हें मालूम पड़ चुका है कि उनके हाथ में कोई साधारण पत्थर नहीं है, पारस है। वे लोहे की जिस चीज़ को छूते हैं, वह सोना बनकर उनकी आखों में चमक भर देती है।..."(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
अहिल्याबाई होलकर (३१ मई १७२५ - १३ अगस्त १७९५) मराठा मालवा साम्राज्य की होलकर साम्राज्ञी थीं। अहिल्याबाई मल्हारराव होलकर की पुत्रवधू एवं खंडेराव की पत्नी थीं। उनके जीवनीकार और इतिहासकार मालकम ने माना है कि अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्नक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाए, मंदिरों में शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु विद्वानों की नियुक्तियाँ की। वे आत्मप्रतिष्ठा एवं आत्मप्रचार के मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं। ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। इस रचना में अहिल्याबाई के जीवन के विभिन्न पक्षों का उद्घाटन होता है। (पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
‘’’नव-निधि’’’ १९४८ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित प्रेमचंद के नौ भावपूर्ण कहानियों का एक संग्रह है। ये नौ कहानियाँ हैं –– राजा हरदौल, रानी सारन्धा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्निकुण्ड, जुगुनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता तथा पछतावा।
बुन्देलखण्ड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुन्देले हैं। इन बुन्देलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है। एक समय ओरछे के राजा जुझारसिंह थे। ये बड़े साहसी और बुद्धिमान् थे। शाहजहाँ उस समय दिल्ली के बादशाह थे। जब शाहजहाँ लोदी ने बलवा किया और वह शाही मुल्क को लूटता पाटता ओरछे की ओर आ निकला, तब राजा जुझारसिंह ने उससे मोरचा लिया। राजा के इस काम से गुणग्राही शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने तुरन्त ही राजा को दक्खिन का शासन-भार सौंपा। उस दिन ओरछे में बड़ा आनन्द मनाया गया। शाही दूत खिलअत और सनद लेकर राजा के पास आया। जुझारसिंह को बड़े-बड़े काम करने का अवसर मिला। सफ़र की तैयारियाँ होने लगी, तब राजा ने अपने छोटे भाई हरदौल सिंह को बुलाकर कहा-"भैया, मैं तो जाता हूँ। अब यह राज-पाट तुम्हारे सुपुर्द है। तुम भी इसे जी से प्यार करना। न्याय ही राजा का सबसे बड़ा सहायक है। न्याय की गढ़ी में कोई शत्रु नहीं घुस सकता, चाहे वह रावण की सेना या इन्द्र का बल लेकर आये। पर न्याय वही सच्चा है, जिसे प्रजा भी न्याय समझे। तुम्हारा काम केवल न्याय ही करना न होगा, बल्कि प्रजा को अपने न्याय का विश्वास भी दिलाना होगा। और मैं तुम्हें क्या समझाऊँ, तुम स्वयं समझदार हो।" (पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह प्रमाणित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- हिंदी रस गंगाधर.djvu [४२८ पृष्ठ]
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
रचनाकार
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बांग्ला के प्रख्यात कथाकार, कवि और पत्रकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- कपालकुण्डला (१८६६)
- आनन्दमठ (१८८२)
- दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग (१९१४)
- दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग (१९१८)
- इन्दिरा (१९१६)
- बंकिम निबंधावली (१९२८)
विकिस्रोत पर उपलब्ध सभी लेखकों के लिए देखें- समस्त रचनाकार अकारादि क्रम से।
आज का पाठ
"गेरीबाल्डी का शेष जीवन कपरेरा मैं व्यतीत हुआ। यहाँ वह अपने बाल-बच्चों के साथ शाँन्ति से जीवन-यापन करता रहा। उसकी इन्द्रियाँ शिथिल हो गई थीं, स्वास्थ्य और बल भी विदा हो चुकी थी; परन्तु श्रम से कुछ ऐसा सहज प्रम था कि अन्तिम क्षण तक कुछ न कुछ करता रहा। और जब सब शक्तियाँ जवाब दे चुकीं, तो बैठा उपन्यास लिखवाया करता। अन्त में १८८४ ई० में थोड़े दिन बीमार रहकर इस नश्वर जगत् से विदा हो गया। और एक ऐसे पुरुष की स्मृति छोड़ गया जो स्वदेश का सच्चा भक्त और राष्ट्र का ऐसा सेवक था, जिसने अपने अस्तित्व को उसके अस्तित्व में निमज्जित कर दिया था, और जो न केवल इटली का, किन्तु अखिल मानवजाति का मित्र और हितचिन्तक था।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५०४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,४६,०३०
- प्रमाणित पृष्ठ = ११,३८८, शोधित पृष्ठ = ४७,४३१
- समस्याकारक = ५४, अशोधित = ९६,०७१, रिक्त = २,४७४
- सामग्री पृष्ठ = ५,३७८, परापूर्ण पृष्ठ = ३६८५
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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