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सप्ताह की पुस्तक
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माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu
माधवराव सप्रे की कहानियाँ माधवराव सप्रे द्वारा १९०१ ई॰ तक लिखी गई कहानियों का संग्रह है जिसका प्रकाशन इलाहाबाद के हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा किया गया था।

एक टोकरी भर मिट्‌टी

"किसी श्रीमान जमीनदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमीनदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई। विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी। उसका प्रिय पति और एकलौता पुत्र भी उसी झोपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धापकाल में एक मात्र आधार थी। जब कभी उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती, तो मारे दुःख के फूट-फूट कर रोने लगती थी, और जब से उसने अपने श्रीमान पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना, तब से तो वह मृतप्राय हो गई थी। उस झोंपड़ी में उसका ऐसा कुछ मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना ही नहीं चाहती थी। श्रीमान के सब प्रयत्न निष्फल हुए, तब वे अपनी जमीनदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत से उस झोंपड़ी पर अपना कब्जा कर लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही। पाँड़ा-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी। एक दिन श्रीमान उस झोंपड़ी के आस-पास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि इतने में वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची।..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
पूर्ण पुस्तकें

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शैवसर्वस्व.pdf

शैवसर्वस्व प्रताप नारायण मिश्र द्वारा लिखित पुस्तक है। इसका प्रकाशन पटना--“खड्गंविलास” प्रेस बांकीपुर ।' द्वारा १८९० ई. में किया गया था।


"आजकल श्रावण का महीना है, वर्षारितु के कारण भू मण्डल एवं गगन मण्डल एक अपूर्व शोभा धारण कर रहे हैं ; जिसे देख के पशु पक्षी नर नारी सभी आनन्दित होतेहैं । काम धन्धा बहुत अल्प होने के कारण सब ढंग के लोग अपनी २ रुचि के अनुसार मन बहलाने में लगे हैं, कोई बागौ में झूला डाले मित्रों सहित चन्द्रमुखियों के मद माती आखों से हरियाली देखने में मग्न है ! कोई लंगोट कसे भंग खाने व्यायाम में संलग्न है ! कोई भोर मांझ नगर के बाहर की वायु सेवन ही को सुख जानता है ! कोई स्वयं तथा ब्राह्मण द्वारा भगवान भूतनाथ की दर्शन पूजनादि में लौकिक और पारलौकिक कल्याण मानता है ! संसार में भांति २ के लोग हैं उनकी रुची भी न्यारी है भक्त भी एक प्रकार के नहीं होते कोई बकुला भक्त हैं अर्थात् दिखाने मात्र के भक्त पर मन जैसे का तैसा ! कोई पेटहुन्त भक्त हैं अर्थात् यजमान से दक्षिणा मिलनी चाहिए और काम न किया पूजाही सही !..."(पूरा पढ़ें)


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  1. हिंदी रस गंगाधर.djvu ‎[४२८ पृष्ठ]
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रचनाकार
रचनाकार

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बांग्ला के प्रख्यात कथाकार, कवि और पत्रकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

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आज का पाठ

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हिन्दी भाषा पर अन्य भाषाओं का प्रभाव अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अध्याय है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।

"हिन्दी भाषा में सबसे अधिक संस्कृतके शब्द पाये जाते हैं । इस हिन्दी भाषा से मेरा प्रयोजन साहित्यिक हिन्दी भाषा से है । बोलचाल की हिन्दी में भी संस्कृतके शब्द हैं, परन्तु थोड़े उसमें तद्भव शब्दोंकी अधिकता है। हिन्दुओंकी बोलचालमें अब भी संस्कृतके शब्दोंके प्रयुक्त होनेका यह कारण है, कि विवाह यज्ञोपवीत आदि संस्कारोंके समय. कथा वार्ता ओर धर्मचर्चाओं में, व्याखानों और उपदेशों में, नाना प्रकार के पर्व और उत्सवों में, उनको पंडितों का साहाय्य ग्रहण करना पड़ता है। पण्डितों का भाषण अधिकतर संस्कृत शब्दों में होता है, वे लोग समस्त क्रियाओंको संस्कृत पुस्तकों द्वारा कराते हैं। अतएव उनके व्यवहार में भी संस्कृत शब्द आते रहते हैं । सुनते सुनते अनेक संस्कृत शब्द उनको याद हो जाते हैं, अतएव अवसर पर वे उनका प्रयोग भी करते हैं। ..."(पूरा पढ़ें)

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