अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमले को 20 साल पूरे हो गए हैं। इस हमले में 2996 लोगों की मौत हुई थी और 40 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ था। हमले में न्यूयॉर्क शहर में स्थित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीसी) की दो गगनचुंबी इमारतें पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी। यह हादसा इतना भयानक था कि मलबे में फंसे लोगों को निकालने के लिए अमेरिका जैसे टेक्नोलॉजिकली एडवांस देश को भी काफी मुश्किलों का समाना करना पड़ा था। इसके मलबे से निकला स्टील भारत भी लाया गया था।
मलबे से कई दिनों बाद 21 लोगों को जिंदा निकाला गया
बिल्डिंग के ध्वस्त होने बाद उसके मलबे को फ्रेश किल्स नाम के लैंडफिल साइट पर ले जाया गया। कई दिनों तक मलबे में शवों की छानबीन की गई। लेकिन इस दौरान कई लोग इससे निकले जहरीले पदार्थों की चपेट में आकर विभिन्न बीमारियों का शिकार हो गए। इस बिल्डिंग के गिरने के बाद स्वयंसेवकों, दमकल, पुलिस और खोजी कुत्तों की एक टीम ने पहले दिन 21 जीवित लोगों को मलबे से बाहर निकाला, लेकिन इसके बाद कोई व्यक्ति जिंदा नहीं निकला। इसके अलावा मलबे में बिखरे हुए शवों के 21,900 टुकड़ों को इकट्ठा किया गया।
इतिहास में सबसे महंगी फोरेंसिक जांच स्थल बना
लैंडफिल साइट जल्द ही अमेरिकी इतिहास में सबसे महंगी फोरेंसिक जांच का एक स्थल बन गया। यहां पर क्षतिग्रस्त हड्डियों की डीएनए पहचान और आंशिक प्रोफाइल का सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया। हालांकि विश्लेषक मलबे से व्यवस्थित तरीके से मानव अवशेषों की पहचान कर उन्हें अलग करने में नाकाम रहे। फ्रेश किल्स' लैंडफिल साइट अज्ञात शवों की कब्रगाह बन गई। इस मलबे से पैदा हुई परेशानियां काबू से बाहर हो गईं। इससे निकली जहरीली गैसें वहां काम करने वालो लोगों के लिये हानिकारक बन गईं।
बचावकर्मियों में से कई की बीमारी से हुई थी मौत
इस दौरान दूषित पदार्थों के संपर्क में आकर बीमार हुए कई लोगों की जान चली गई, जिनमें निर्माण श्रमिक, चिकित्सकों और अन्य लोग शामिल हैं। मलबे से उपजी गैसों और दूषित पदार्थों ने गुर्दे, हृदय, यकृत संबंधी बीमारियों और स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा दिया, जिसका दंश कई साल तक लोगों ने झेला।
पीड़ितों का दर्द, मुनाफा कमाने की होड़
अगले एक दशक के दौरान, इस दंश को झेलने वाले कर्मियों ने मुआवजे का दावा किया। साथ ही ग्राउंड जीरो (घटनास्थल) पर पर्याप्त सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराने को लेकर न्यूयॉर्क शहर के प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दाखिल किया। इसके बाद 9/11 स्वास्थ्य एवं मुआवजा अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के तहत उन्हें स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा प्रदान करने के लिये एक कानून बनाया गया।
बिल्डिंग की स्टील को चीनी कंपनी ने खरीदा
एक ओर जहां इस लैंडफिल साइट को स्वास्थ्य के लिये खतरनाक माना गया, तो दूसरी ओर, ध्वस्त इमारत के मलबे से निकले स्टील को चीन और भारत के कबाड़ बाजारों में बेचकर मुनाफा कमाने का सिलसिला भी जारी रहा। एक कबाड़ प्रोसेसर ने न्यू यॉर्क सिटी डिपार्टमेंट ऑफ़ सैनिटेशन के साथ अनुबंध के तहत मलबे से निकले स्टील को खरीद लिया। एक अन्य कंपनी, शंघाई बाओस्टील ग्रुप ने एनवाईसी द्वारा नीलाम किए गए अतिरिक्त 50,000 टन बड़े संरचनात्मक स्टील 120 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के हिसाब से खरीद लिया।
भारत भी भेजा गया था WTC बिल्डिंग का स्टील
मलबे से निकले स्टील को घटना के छह महीने बाद भारत ले जाया गया। इससे भारत के कई शहरों में विभिन्न बिल्डिंगों का निर्माण किया गया। इनमें एक कॉलेज, एक कार रिपेयरिंग डिपो और बिजनेस सेंटर का निर्माण शामिल है। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज को जल्द से जल्द फिर से खोलने के लिए, डिजाइन और निर्माण विभाग ने डब्ल्यूटीसी के मलबे को साफ करने वास्ते पांच निर्माण कंपनियों के साथ अनुबंध किया।
मलबे को जल्दीबाजी में लगाया गया था ठिकाने
पीड़ितों के परिवारों ने इस बात पर आपत्ति जताई कि अधिकारियों ने शवों को निकालने में लापरवाही बरती। उनका तर्क था कि मलबे से जैविक और गैर-जैविक कचरे के ढेर को जल्दबाजी में हटाकर अस्पष्ट रूप से शेष मलबे को दफन कर दिया गया। फ्रेश किल्स' लैंडफिल साइट को साल 2001 की शुरुआत में बंद कर दिया गया था, लेकिन 11 सितंबर के हमले के बाद इसे फिर से खोला गया।
2011 में इस जगह बनाया गया स्मारक
बताया जाता है कि लगभग 1,600 लोग उस समय इस साइट से प्रभावित हुए थे। हमले के बाद लगभग 1.6 लाख मिलियन टन मलबा यहां लाया गया था। इस मबले से हजारों मानव अवशेष निकाले गए लेकिन केवल 300 लोगों की ही पहचान हो पाई। साल 2011 में यहां एक स्मारक बनाया गया। इमारत के मलबे को लैंडफिल साइट के 40 एकड़ भूभाग में दफन कर दिया गया। इस तरह हमले के बाद अमेरिकी लोगों के लिये मुसीबत का सबब बने इस मलबे का हमेशा के लिये खात्मा हो गया।