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9/11 के 20 साल : अमेरिका पर आतंकी हमले के बाद बढ़ी इस्लाम के प्रति नफरत, जानें भारत में कैसे पड़ा असर

Edited by | टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Updated: Sep 11, 2021, 5:38 AM
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अमेरिका में भले ही साल 2001 में हुए आतंकी हमले को 20 साल बीत गए हैं लेकिन उसका व्यापक असर दुनियाभर में देखने को मिल रहा है। इस्लाम के प्रति पूर्वाग्रह तो पहले से ही था लेकिन आतंकी हमले के बाद इसके प्रति दुनिया में नफरत और बढ़ गई।

 
9/11 के 20 साल : अमेरिका पर आतंकी हमले के बाद बढ़ी इस्लाम के प्रति नफरत, जानें भारत में कैसे पड़ा असर
9/11 के 20 साल : अमेरिका पर आतंकी हमले के बाद बढ़ी इस्लाम के प्रति नफरत, जानें भारत में कैसे पड़ा असर

हाइलाइट्स

  • अमेरिका में 2001 में ट्विन टॉवर पर अलकायदा के 19 आतंकियों ने किया था हवाई हमला
  • हमले के बाद अमेरिका समेत दुनियाभर के कई देशों में कट्टरवाद का पर्याय बना इस्लाम
  • हमले के बाद अमेरिका, यूके, भारत समेत कई देशों में निगरानी की नई दुनिया का जन्म हुआ
नई दिल्ली
आज अमेरिका के दर्द के 20 साल पूरे हो गए हैं। समय भले ही बीत गया हो लेकिन आतंक की उस चोट का दर्द अमेरिका के जेहन में आज भी ताजा है। 9/11 के उस हमले का इस्लाम से कोई कनेक्शन था। दुनिया में इस्लामोफोबिया 9/11 के साथ शुरू नहीं हुआ, लेकिन आतंकी हमलों और आतंक के खिलाफ लड़ाई ने इस्लाम के प्रति दुश्मनी को बढ़ा दिया। हमले की भयावहता और 19 आतंकवादियों के उस खौफ ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े धर्म के लिए नफरत में बदल दिया गया। कट्टरवाद और आतंकवाद के संदर्भ के बजाय इसके कारण के रूप में इस्लाम को देखा गया। इसमें मुस्लिम राजनीति, सत्तावादी शासन की बारीकियों और अमेरिकी विदेश नीति की महत्वपूर्ण भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया।

क्या इस्लाम हिंसा को तरजीह देता है?
मीडिया में लोकप्रिय नैरेटिव और छवियों के माध्यम से, इस्लाम को क्रूर और कट्टर धर्म के रूप में बताया गया, जो हिंसा को तरजीह देता है। हिजाब और बुर्का संघर्ष की मुख्य वजह बन गए। सांस्कृतिक मतभेदों का राजनीतिकरण हो गया। अमेरिका में सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2010 के बाद किस तरह से इस्लाम के बारे में विचार खराब होते गए। कुल अमेरिकियों में से लगभग आधे लोगों का मानना था कि इस्लाम हिंसा को बढ़ावा देता है।

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दुनियाभर में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ा हेट क्राइम
सभी बहुलतावादी समाज के सामाजिक तानेबाने में बदलाव आ चुका है। दुनियाभर में नॉर्वे से लेकर न्यूजीलैंड, जर्मनी से म्यांमार और भारत तक मुसलमानों के खिलाफ हेट क्राइम और हमले बढ़ रहे हैं। इस्लाम को लेकर डर और रुढ़िवादिता ने दुनिया के कई देशों में दक्षिणपंथी पार्टियों के लिए फायदे का काम किया है। निश्चित रूप से इसको लेकर न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा ऑर्डर्न की तरह अलग राजनैतिक विचार भी हो सकता है। न्यूजीलैंड की पीएम डर पर एकजुटता को अधिक तरजीह देती हैं।

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अमेरिका में 9/11 ने फोन और अन्य डिवाइसेज के जरिये निगरानी की नई दुनिया को जन्म दिया। इस आतंकी हमले के बाद चेहरे से पहचान और बायोमीट्रिक का जोर बढ़ा। वीकल ट्रैकिंग, डीएनए टेक्नोलॉजी और सीसीटीवी भी पूरी तरह से जांच का हिस्सा बन गए। जॉर्ज बुश एनएसए को वायरटैप्स का संचालन करने और अमेरिकी धरती पर भी विदेशी संचार पर मेटाडेटा इकट्ठा करने की अनुमति दी। होमलैंड सिक्योरिटी के नाम पर पैट्रियट एक्ट जल्द ही निगरानी के लिए एक विशाल और अनियंत्रित बुनियादी ढांचा बन गया।

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अमेरिका में नागरिकों की प्रिवेसी का उल्लंघन
इसबीच, डिजिटल टेक्नोलॉजी पहले से अधिक विकसित हो चुकी है और लोग और खुलकर जिंदगी को जी रहे हैं। लोग अब फोन और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रोजाना अधिक एक्टिविटिज कर रहे हैं। साल 2013 में यूएस गवर्नमेंट कॉन्ट्रेक्टर एडवर्ड स्नोडन ने संदिग्ध और गैरकानूनी रूप से जासूसी का खुलासा किया था। इसमें अमेरिकी जासूसी एजेंसियों का 52.6 अरब डॉलर का 'काला बजट' सामने आया था। इसमें प्रिज्म और टेम्पोरा जैसे प्रोग्राम के जरिये नागरिकों की प्रिवेसी का उल्लंघन किया था।

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26/11 के बाद भारत में बढ़ी निगरानी
यूके में जीसीएचक्यू ने भी व्यापक रूप से निगरानी की। भारत में 26/11 के हमले के बाद नेटग्रिड, नेत्रा और सीएमएस जैसे निगरानी कार्यक्रम शुरू किए गए। इनके जरिये लोगों की हर छोटी से छोटी गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है। भारत में तो विदेशी प्राइवेट कंपनी स्पाइवेयर की पेगासस के जरिये गुप्त ऑपरेशन चलाए जाने के भी आरोप लगे हैं। हालांकि, प्रिवेसी के मूलभूत अधिकारों के बावजूद इस तरह की निगरानी को लेकर जनता में बहुत ज्यादा रोष या प्रतिरोध देखने को नहीं मिलता है।

आप उनके बारे में कुछ नहीं जानते
पिछले दो दशक में आतंकवाद-इंडस्ट्री के मेलजोल ने कई लोकतांत्रिक देशों में विशेषाधिकार और गोपनीयता की संस्कृति तैयार कर दी है। इसके पीछे की वजह कार्यपालिका को जैसे अमेरिका में राष्ट्रपति या भारत में प्रधानमंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् का अधिक मजबूत होना है। विधायिका और अदालतें जो कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने के लिए होती हैं, इन निर्णयों से अवगत नहीं होती हैं। बेशक सरकार को कुछ संवेदनशील सूचनाओं को गुप्त रखने की जरूरत है, कम से कम कुछ समय के लिए। लेकिन अगर इन कार्यों का कभी खुलासा नहीं किया जाता है और यहां तक कि अनावश्यक जानकारी को भी गुप्त रखा जाता है, तो इस विशेषाधिकार का दुरुपयोग बढ़ता है।

हवाई यात्रा बन गई है अग्नि परीक्षा
हवाई यात्रा के लिए एयरपोर्ट पहुंचने पर आपसे पूछा जाता है क्या अपने चेक-इन बैग को आपने खुद पैक किया है। पैकिंग के बाद किसी ने भी इसे देखा या कुछ किया है। आपको एयरपोर्ट फ्लाइट के टाइम से पहले जाना होगा। आपको अपने बेल्ट या जूते उतारने पड़ सकते हैं, फुल बॉडी स्कैन कराना होगा। अमेरिका में 9/11 के बाद एयर ट्रैवल का एक्सपीरियंस को हर प्वाइंट पर बदल गया है। इसमें वीजा प्रोसेस और इमिग्रेशन अधिकारी के सवालों की लिस्ट भी शामिल है। एयर पैसेंजर की प्रोफाइलिंग अधिक होती है। एयरलाइंस चेक-इन-क्लोज के तुरंत बाद सभी यात्रियों का पूरी डिटेल भेजती हैं।

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उड़ान के दौरान, कॉकपिट के दरवाजों पर बख्तरबंद ताले और कैमरों लग चुके हैं। पायलट को यह देखने की जरूरत होती है कि अनलॉक से पहले कौन उड़ान डेक में प्रवेश करने के लिए नॉक कर रहा है। पिछले दो दशकों में हवाई यात्रा एक हतोत्साहित करने वाली चीज बन गई है। इसकी वजह आतंकवाद का डर है। वहीं, अब कोरोना ने खौफ ने असामान्य चीजों को न्यू नॉर्मल बना दिया है।
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Web Title : islamophobia start before 9/11 terror attack on america but made surveillance to body scanners abnormal to normal
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