संपादकीय: अव्यवस्था की उड़ान
जब कोरोना को लेकर एक ही तरह के प्रोटोकॉल समूचे देश में लागू हैं तो यह समझना मुश्किल है कि एकांतवास के मामले में इतने अलग-अलग नियम क्यों हैं! हालांकि बाद में उड्डयन मंत्री ने साफ किया कि अगर किसी यात्री के पास आरोग्य सेतु ऐप है और उसमें कोई लक्षण नहीं पाए गए हैं तो उसे एकांतवास की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
करीब दो महीने की पूर्णबंदी के बाद सोमवार को देश में शुरू हुई घरेलू उड़ानों की हालत इस कदर अस्त-व्यस्त हो जाएगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। पहले ही दिन जब देश के अलग-अलग राज्यों के लिए विमान सेवाएं शुरू हुईं तो स्वाभाविक ही बहुत सारे यात्री इस उम्मीद में थे कि उनका सफर निर्बाध पूरा होगा। लेकिन हालत यह हुई कि देश के अलग-अलग इलाकों में किसी न किसी वजह से छह सौ तीस उड़ानें रद्द कर दी गईं।
मौसम से लेकर अन्य जिन वजहों से आमतौर पर उड़ानों को रद्द किया जाता है, उससे इतर यह ऐसी स्थिति थी कि लोगों के लिए समझना मुश्किल था कि आखिर यह नौबत क्यों आई। अव्यवस्था का आलम इससे समझा जा सकता है कि कई यात्रियों को अपनी उड़ान रद्द होने की सूचना हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद और यहां तक कि आखिरी मिनटों में मिली। बाद में बताया गया कि कुछ राज्यों में हवाई अड्डों का परिचालन नहीं होने की वजह से उड़ानें रद्द की गईं। सवाल है कि यात्रा के जिस माध्यम को सबसे संवेदनशील और व्यवस्थित सेवाओं के रूप में शुमार किया जाता है, वहां ऐसी अफरा-तफरी क्यों पैदा हुई!
सिर्फ देश के अलग-अलग राज्यों के हवाईअड्डों के बीच तालमेल में कमी या फिर दूसरी किसी भी वजह से ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर यह व्यवस्थागत मोर्चे पर एक बड़ी नाकामी है। हवाई सफर को सबसे संवेदनशील यात्रा माध्यम के रूप में देखा जाता है। इसमें सेकेंड के स्तर पर समय के हिसाब और पूर्व सूचनाओं के मुताबिक विमानों का संचालन किया जाता है।
यह भी मानना मुश्किल है कि विमानों की उड़ानों का फैसला अचानक ही लिया गया और हड़बड़ी में उड़ान सेवाओं की शुरूआत कर दी गई। जहां तक कोरोना जांच आदि का सवाल है तो बारह मई से राजधानी स्तर की विशेष ट्रेनों के संचालन के दौरान इसका सफल प्रयोग किया जा चुका था। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि हवाई उड़ानों के मामले में दो महीने बाद पहले ही दिन इस तरह की अव्यवस्था क्यों सामने आई! इसके अलावा एक बड़ा ऊहापोह यात्रियों को एकांतवास में भेजे जाने को लेकर बना रहा। इस मामले अलग-अलग राज्यों ने अपने अलग नियम बनाए हैं। कहीं चौदह दिन, तो कहीं सात या दस दिन। कहीं घर में तो कहीं शासकीय एकांतवास, कहीं अपने खर्च पर तो कहीं सरकारी खर्च पर। कुछ राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में इसकी जरूरत नहीं बताई गई है।
जब कोरोना को लेकर एक ही तरह के प्रोटोकॉल समूचे देश में लागू हैं तो यह समझना मुश्किल है कि एकांतवास के मामले में इतने अलग-अलग नियम क्यों हैं! हालांकि बाद में उड्डयन मंत्री ने साफ किया कि अगर किसी यात्री के पास आरोग्य सेतु ऐप है और उसमें कोई लक्षण नहीं पाए गए हैं तो उसे एकांतवास की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना संक्रमण रोकने के लिए किसी भी तरह की कोताही नहीं होनी चाहिए। लेकिन अगर स्थिति को काबू में मान कर पूर्णबंदी में ढील देकर चरणबद्ध तरीके से बाजार खोले जा रहे हैं, सड़क, रेल और हवाई यात्रा सेवाओं की शुरूआत की जा रही है तो वह पूरी तैयारी के साथ की जानी चाहिए। मामूली लापरवाही से इस बीमारी पर काबू पाने की कोशिशों को झटका लगेगा और खासतौर पर हवाई यात्राओं के संदर्भ में एक छोटी चूक बड़ी त्रासदी की वजह बन सकती है।
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