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दुनिया मेरे आगे

दुनिया मेरे आगे: वक्त रुकता है कहां

शहर हों या देहात, आप घूम कर देख लीजिए। हरेक उत्सव में अतीत मुस्कराता हुआ आता है। वह मांगता कुछ नहीं, मगर हमसे सब...

दुनिया मेरे आगे: शहर में हाट

शहरों-महानगरों के मॉल बनाम कस्बाई और ग्रामीण इलाकों की हाट पर लंबी बहस हो सकती है। दरअसल, तेजी से होते शहरीकरण के बावजूद हमारा...

दुनिया मेरे आगे: स्वच्छता के सामने

आज देश में ‘स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत’ एक व्यापक नारा बन चुका है जो आमतौर पर सभी जगहों पर बोला-पढ़ा और सुना जा रहा...

दुनिया मेरे आगे: बराबरी के हक में

नैसर्गिक रूप से एक महिला निषेचन के समय अपने गर्भ में लड़की या लड़का- दोनों के लिए समान अवसर प्रदान करती है। लेकिन पुरुष...

दुनिया मेरे आगे: जश्न के चेहरे

जन्मदिन मनाने का यह कौन-सा तरीका विकसित हो गया है? एक हमारा तरीका था, जब सुबह उठते ही माता-पिता के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त...

दुनिया मेरे आगे: भाषा बनाम दृष्टि

इतिहासकार उपलब्ध साक्ष्यों और अपनी विचारधारा से एक तरह का इतिहास रचते हैं। जो उसका कथ्य है, वही उसका कथ्य क्यों है, इस पर...

दुनिया मेरे आगे: संवेदनाओं का अकाल

कुछ समय पहले एक खबर पढ़ कर दिल बैठ गया। दिलो-दिमाग में कई सवालों ने घेरा डाल लिया। वक्त के साथ लोग इसे भी...

दुनिया मेरे आगे: भूख के बरक्स

आज हर दाने की कीमत पहचानने की जरूरत है। न केवल सरकार को अनाज भंडारण की दिशा में उचित कदम उठाने की जरूरत है,...

दुनिया मेरे आगे: सुविधा का सफर

वे दिन बहुत पीछे चले गए हैं, जब शहरों कस्बों में इक्के-तांगे दौड़ते थे और साइकिलों पर बड़े-बड़े डॉक्टर इंजीनियर भी शान से बैठे...

दुनिया मेरे आगे: संस्कृति और सरोकार

जहां बिहार की एक अन्य ध्रुपद शैली बेतिया घराने की परंपरा सिमट रही है, वहीं दरभंगा घराने के युवा कलाकार देश-विदेश में एक बार...

दुनिया मेरे आगे: हंसी और मजाक

दरअसल, हमने अब खुद से किसी बात पर कम और दूसरों पर हंसना ज्यादा शुरू कर दिया है। पहले कहा जाता था कि आदमी...

दुनिया मेरे आगे: लोक रंग का सूरज

सबसे बड़ी बात है कि छठ व्रत के अवसर पर गीतों के माध्यम से व्रत करने वाली महिलाएं सूर्य से बातचीत भी करती हैं।...

दुनिया मेरे आगे: हमदर्दी की हद

अपनों द्वारा भुला दिए जाने के दंश को भारत के बदनसीब आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर से ज्यादा किसने महसूस किया होगा। उनकी मशहूर...

दुनिया मेरे आगे: सुकून का सफर

हाल में अनायास ही दिमाग में यह सवाल घूमने लगा कि आखिर आदमी है क्या! क्या हमारा जीवन एक आदमी से इंसान बनने का...

दुनिया मेरे आगे: प्रचार का मानस

आज सूचनाओं के तेजी से प्रसार के इस युग में किसी भी जरिए खूब प्रचारित कोई जानकारी हमारे विचारों को आकार देने में बड़ी...

दुनिया मेरे आगे: अमीर कौन

पिछली दिवाली की बात मुझे याद आ रही है। एक अति संपन्न व्यक्ति हर साल दिवाली के दिन अपने घर को तरह-तरह की बहुरंगी...

दुनिया मेरे आगे: बाजार में दिवाली

विडंबना यह है कि जो विज्ञापन भावनात्मक चीजों, व्यवहारों को दिखा कर गाढ़ी कमाई कर रहे हैं, हम उनमें दिखाए जा रहे उत्पादों को...

दुनिया मेरे आगे: दिखावे की जुबान

लोगों को तरह-तरह के शौक होते हैं। किसी तरह अंग्रेजी बोलना भी उनमें से एक है। कुछ लोग हैं जिन्हें अंग्रेजी का ज्ञान न...