छत्तीसगढ़ के तीसरी बार निर्वाचित मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 12 दिसंबर 2013 को राजधानी रायपुर में शपथ ग्रहण के बाद राज्य के विकास के एक नये अध्याय की शुरूआत की। उन्होंने रायपुर के पुलिस परेड मैदान में आम जनता के बीच शपथ ग्रहण कर अपनी तीसरी पारी की शुरूआत की। पूरे देश में डॉ. रमन सिंह को सबके साथ, सबके विकास के लिए काम करने वाले और विशेष रूप से गांव-गरीब तथा किसानों के हित में अपनी अनेक नवीन योजनाओं के जरिए जनता का दिल जीतने वाले सहृदय और संवेदनशील मुख्यमंत्री के रूप में पहचाना जाता है।
डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ विधानसभा के वर्ष 2003 के प्रथम आम चुनाव में जनादेश मिलने के बाद पहली बार सात दिसम्बर 2003 को राजधानी रायपुर के पुलिस परेड मैदान में आयोजित सार्वजनिक समारोह में हजारों लोगों के बीच शपथ ग्रहण कर मुख्यमंत्री पद का कार्य भार संभाला था। उन्होंने राज्य विधानसभा के दूसरे आम चुनाव में 14 नवम्बर 2008 और 20 नवम्बर 2009 को हुए मतदान तथा आठ दिसम्बर 2008 को हुई मतगणना के बाद बारह दिसम्बर को इसी पुलिस परेड मैदान में विशाल जनसमुदाय के बीच मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।उन्होंने इस बार भी बारह दिसम्बर को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। यह भी संयोग है कि वर्ष 2008 के विधानसभा आम चुनाव की मतगणना भी आठ दिसम्बर को हुई थी और तीसरे आम चुनाव की मतगणना भी इस बार आठ दिसम्बर को हुई।
उल्लेखनीय है कि डॉ. रमन सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के वर्तमान कबीरधाम (कवर्धा) जिले के ग्राम ठाठापुर (अब रामपुर) में एक कृषक परिवार में 15 अक्टूबर 1952 को हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय ठाकुर विघ्नहरण सिंह जिले के वरिष्ठ समाजसेवी और प्रतिष्ठित अधिवक्ता थे। डॉ. रमन सिंह की माता स्वर्गीय श्रीमती सुधादेवी सिंह धार्मिक प्रकृति की सहज-सरल गृहिणी थीं। सौम्य और शालीन व्यक्तित्व के धनी डॉ. रमन सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती वीणा सिंह भी एक अत्यंत व्यवहार कुशल गृहिणी और समाजसेवी हैं। मुख्यमंत्री के सुपुत्र श्री अभिषेक सिंह एम.बी.ए. की उपाधि सहित मेकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और सुपुत्री अस्मिता दंत चिकित्सक हैं। डॉ. रमन सिंह की प्रारंभिक शिक्षा छत्तीसगढ़ के तहसील मुख्यालय खैरागढ़ सहित कवर्धा और राजनांदगांव में हुई। उन्होंने वर्ष 1975 में रायपुर के शासकीय आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय से बी.ए.एम.एस. की उपाधि प्राप्त की। डॉ. रमन सिंह, डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा करना चाहते थे। इसके लिए वे आयुर्वेदिक महाविद्यालय रायपुर में प्रवेश लेने से पहले प्री-मेडिकल परीक्षा (पी.एम.टी.) भी उत्तीर्ण कर चुके थे, लेकिन उम्र कम होने के कारण उन्हें एम.बी.बी.एस. में दाखिला नहीं मिल पाया, लेकिन बाद में आयुर्वेदिक महाविद्यालय से बी.ए.एम.एस. की डिग्री लेकर उन्होंने डॉक्टरी शुरू की और एक लोकप्रिय आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने अपने गृह नगर कवर्धा के ठाकुरपारा में निजी डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस करते हुए गरीबों का निःशुल्क इलाज किया और गरीबों के डॉक्टर के रूप में उन्हें विशेष लोकप्रियता मिली। डॉ. सिंह व्हालीबॉल के अच्छे खिलाड़ी भी रहे।
जन-सेवा और लोक-कल्याण की भावना से परिपूर्ण डॉ. रमन सिंह ने व्यक्तिगत रूप से समाज सेवा की अभिरूचि के कारण अपने जीवन को बड़े लक्ष्य के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। डॉ. रमन सिंह का सार्वजनिक जीवन का सफ़र
1976-77 में शुरू हुआ। वे वर्ष 1983-84 में शीतला वार्ड से कवर्धा नगरपालिका के पार्षद निर्वाचित हुए। वर्ष 1990-92 और वर्ष 1993-98 तक वे तत्कालीन मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने विधानसभा की लोक-लेखा समिति के सदस्य और विधानसभा की पत्रिका ‘विधायिनी’ के संपादक के रूप में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में वे राजनांदगांव क्षेत्र से विजयी हुए। डॉ. रमन सिंह की प्रतिभा और लोकप्रियता को देखते हुए प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री बनाया। डॉ. सिंह ने इस विभाग में केन्द्रीय राज्यमंत्री के रूप् में अपनी कुशल प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया। डॉ. सिंह ने राष्ट्रमंडलीय देशों के संसदीय संघ की छठवीं बैठक में हिस्सा लिया। इसके अलावा उन्होंने इजराइल, नेपाल, फिलीस्तीन और दुबई में आयोजित भारतीय व्यापार मेले में भी देश का नेतृत्व किया।
मुख्यमंत्री के रूप में अपने पांच वर्ष के प्रथम कार्यकाल में डॉ. रमन सिंह ने राज्य में अनेक जन-कल्याणकारी योजनाएं शुरू की। अपने प्रथम कार्यकाल में उन्होंने लाखों किसानों को ऋण मुक्त कर राहत दिलायी। अपने प्रथम दो कार्यकाल में उन्होंने किसानों के लिए सहकारी बैंकों से मिलने वाले ऋणों पर प्रचलित 14-15 प्रतिशत की वार्षिक ब्याज दर को घटाकर 9 प्रतिशत, 7 प्रतिशत और 6 प्रतिशत और तीन प्रतिशत करते हुए एक प्रतिशत कर दिया। ग्राम सुराज अभियान और नगर सुराज अभियान के जरिए उन्होंने शासन और प्रशासन को आम जनता के दरवाजे तक पहुंचाकर लोगों के दुख-दर्द को दूर करने की सार्थक पहल की। छत्तीसगढ़ को देश का पहला विद्युत कटौती मुक्त राज्य बनाने का श्रेय भी डॉ. रमन सिंह के कुशल नेतृत्व को दिया जाता है। उन्हांेने राज्य के लगभग 42 लाख गरीब परिवारों के लिए पिछले वर्ष 2012 में देश का पहला खाद्य सुरक्षा कानून बनाकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कानूनी स्वरूप दिया और इन गरीब परिवारों को मात्र एक रूपए और दो रूपए किलो में हर महीने 35 किलो चावल, दो किलो निःशुल्क नमक, आदिवासी क्षेत्रों में पांच रूपए किलो में दो किलो चना और गैर आदिवासी क्षेत्रों में दस रूपए किलो में दाल वितरण का प्रावधान किया। महाविद्यालयीन छात्र-छात्राओं को सूचना प्रौद्योगिकी से जोड़ने के लिए छत्तीसगढ़ युवा सूचना क्रांति योजना की शुरूआत की। इसके अंतर्गत उन्हें निःशुल्क लैपटाप और निःशुल्क कम्प्यूटर टेबलेट दिए जा रहे हैं। बेरोजगारों को स्वरोजगार तथा नौकरी के लिए कुशल मानव संसाधन के रूप में प्रशिक्षित करने के इरादे से मुख्यमंत्री ने राज्य के सभी 27 जिलों में आजीविका कॉलेज की स्थापना की योजना बनाई है। इसकी शुरूआत दंतेवाड़ा से हो चुकी है। तेन्दूपत्ता श्रमिकों के लिए निःशुल्क चरण पादुका वितरण, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए निःशुल्क औजार, महिला श्रमिकों के लिए निःशुल्क सिलाई मशीन और साइकिल वितरण, सरस्वती सायकल योजना के तहत हाई स्कूल स्तर की अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग की बालिकाओं के लिए निःशुल्क साइकिल वितरण, बस्तर और रायगढ़ में मेडिकल कॉलेज की स्थापना डॉ. रमन सिंह के विगत दो कार्यकाल की उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं। उनकेे नेतृत्व में विगत दस वर्षों में छत्तीसगढ़ को विभिन्न क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण विकास योजनाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें वर्ष 2011 में सर्वाधिक चावल उत्पादन के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के हाथों भारत सरकार का प्रतिष्ठित कृषि कर्मण पुरस्कार भी शामिल हैं। इसके अलावा साक्षरता, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा संरक्षण, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, उद्यानिकी मिशन सहित कई क्षेत्रों में इस दौरान छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है। डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ की आम जनता की बोलचाल की भाषा ‘छत्तीसगढ़ी’ को राजभाषा का दर्जा दिलाया। राजधानी रायपुर के नजदीक एक विशाल अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण भी डॉ. रमन सिंह के प्रथम कार्यकाल में हुआ। उन्होंने शासकीय कर्मचारियों को केन्द्र के समान छठवां वेतन मान स्वीकृत किया और हजारों दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमितिकरण के जरिए नौकरी में एक सुरक्षा की भावना प्रदान की। ग्राम सुराज अभियान के माध्यम से राज्य के दूर-दराज गांवों तक जनता के बीच अचानक पहुंच कर लोगों के दुख-दर्द को जानने, समझने और यथासंभव तुरंत हल करने की अनोखी शैली ने भी जनता का दिल जीत लिया है।
आलेख
पहली प्राथमिकता पर्याप्त पानी
डॉ. रमन सिंह,
मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़
सूरज देवता के तेवरों ने इन दिनों सबके चेहरों पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। हम अंदाज नहीं लगा पा रहे हैं कि इस भीषण गर्मी में अभी कितना और कष्ट झेलना बाकी है। जगह-जगह से खबरें आ रही हैं कि भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। पीने और निस्तार के पानी की समस्या रोज बढ़ती जा रही है। नदियों का पानी तो धूप ने सोख लिया है। बोरिंग से जितने बड़े पैमाने पर सम्भव है, उतने बड़े पैमाने पर पानी खींच कर आपात स्थिति का मुकाबला किया जा रहा है। अभी बारिश कोसों दूर है। यह समय सिर्फ इस बात की चिंता करने का नहीं है कि आज और एक-डेढ़ महीने का समय किसी तरह बीत जाए। बल्कि यह सोचने का है कि आने वाली बारिश के पानी को अगले साल की गर्मी के लिए बचाने के क्या उपाय हम कर सकते हैं। सरकारी स्तर पर जो कुछ भी सम्भव है, वह तो किया जाएगा लेकिन आम जनता को इस चिंता में शामिल किए बिना, हम आगामी एक-दो साल या अनेक सालों की चिंता दूर नहीं कर सकते।
बीते कुछ महीनों में अनेक स्थानों की यात्राओं के दौरान मैंने महसूस किया कि जलाशयों के संरक्षण-संवर्धन के लिए किए जा रहे प्रयास काफी नहीं है। छत्तीसगढ़ में नदियां, तरिया, नरवा, ढरवा को बचाने की परम्परा रही है। काफी बड़े पैमाने पर तालाब और कुएं यहां बनाए गए हैं। लेकिन हाल के वर्षों में नलकूप खनन की सुविधा और उस पर आने वाले कम खर्च के कारण अब तालाबों और कुओं की खुदाई काफी कम हो गई है। यात्राओं के दौरान मेरे दिमाग में यह बात आई थी कि अब तालाबों और ऐसे छोटे जलाशयों को बचाने के लिए गंभीरता से प्रयास करना जरूरी है। मैं चाहता था कि जल्दी से जल्दी इस दिशा में काम शुरू हो, इसलिए दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार के बीच ही मैंने रायपुर में तालाबों का हाल जानने के लिए, उनके बचाव के लिए, हर सम्भव सुधार के लिए, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के साथ अनेक तालाबों का निरीक्षण किया। इस तरह हमने पूरे राज्य में पानी का एक नया अभियान छेड़ने का निर्णय लिया। मुझे मालूम है कि तमाम सीमाओं के बावजूद हम व्यापक जनसहयोग से बहुत बड़े पैमाने पर बरसात के पानी को रोकने का काम कर सकते हैं। मैं चाहूंगा कि उपलब्ध पानी और वर्षाजल बचाने के लिए आज से आप संकल्प लें। तालाबों, जलाशयों के संरक्षण, रेनवाटर हार्वेस्टिंग, वाटर रिचार्जिंग के लिए व्यक्तिगत स्तर पर कोई न कोई उपाय जरूर करें। इस संबंध में सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर चलाए जा रहे अभियानों से जुड़ कर कोई सार्थक कार्य जरूर करें।
लगातार घटती बारिश
छत्तीसगढ़ में वैसे तो विगत दस वर्षों की औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1340 मिलीमीटर है, जो कि देष के अनेक राज्यों की तुलना में बेहतर है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि छत्तीसगढ़ के हर जिले में बारिश लगातार कम होती जा रही है। हर जिले में बारिश का औसत लगातार गिर रहा है। बारिश कम होने का कारण सामान्यत: जंगलों का कम होना माना जाता है। छत्तीसगढ जंगलों के मामले में सौभाग्यषाली रहा है, क्योंकि यहां कुल क्षेत्रफल के 44 प्रतिशत हिस्से में वन है। हां, विकास की प्रक्रिया में शहरों में तथा नवविकसित नगरों में जरूर हरियाली कम हो रही है। इसलिए राज्य की पहली प्राथमिकता सब-दूर पर्याप्त मात्रा में क्षतिपूरक वृक्षारोपण है। मैं चाहूंगा कि इस संबंध में राज्य सरकार की वृक्षारोपण योजनाओं में आम जनता ज्यादा से ज्यादा संख्या में जुड़ें और सरकारी तथा व्यक्तिगत प्रयासों को मिलाकर राज्य को हरा-भरा बनाए रखने में योगदान दें। आप जानते ही हैं कि छत्तीसगढ़ की नदियों में पानी का मुख्य स्रोत बारिश ही है। यहां की नदियों का उद्गम बर्फ के पहाड़ों से नहीं बल्कि साधारण पहाड़ों से होता है। इसलिए बर्फ पिघलने के कारण यहां की नदियों में जल प्रवाह जैसा कोई साधन नहीं। विगत वर्ष राज्य में 1097.2 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य वर्षा से 103 मिमी कम हुई। जिसके कारण 8 जिलों की 33 तहसीलों को सूखा प्रभावित घोषित कर वहां आवश्यक राहत कार्य कराए गए।
सिंचाई क्षमता वृध्दि दर दोगुनी हुई
राज्य में पानी का मुख्य साधन बरसात है, अत: साल भर के पानी के इंतजाम का मुख्य साधन बहने से रोका गया पानी है। शासन ने अपने स्तर पर बरसात का पानी रोकने के लिए अनेक उपाय किए हैं। जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था, तब अर्थात 2000 में सरकारी माध्यमों की सिंचाई क्षमता 13.2 लाख हेक्टेयर थी, जो कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत थी जो अब करीब 8 प्रतिशत बढ़कर लगभग 31 प्रतिशत हो गई है। इस तरह देखा जाए तो आजादी के 50 वर्षों में प्रति वर्ष मात्र 0.46 प्रतिशत की रफ्तार से सिंचाई क्षमता बढ़ी थी। राज्य गठन के बाद प्रतिवर्ष की औसत वृध्दि एक प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है, इस तरह 8 वर्षों में सिंचाई क्षमता की रफ्तार दोगुना से अधिक हो गई है। फिर भी यह वास्तविक जरूरत की तुलना में बहुत कम है। छत्तीसगढ़ का भौगोलिक क्षेत्रफल 137.36 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से कुल बोया गया क्षेत्र मात्र 57.16 लाख हेक्टेयर है और निराबोया गया क्षेत्र मात्र 47.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है। जलसंसाधन विकास के लिए 2001-02 में 294.16 करोड़ रूपए, 2002-03 में 501.63 करोड़ रूपए दिए गए थे। इसके बाद हमने वर्ष 2003-04 से जल संसाधन विकास के लिए जो प्राथमिकता तय की उससे अब यह बजट चार गुना तक पहुंच रहा है। 2003-04 में 577 करोड़ रूपए, 2004-05 में 819 करोड़ रूपए, 2005-06 में 714 करोड़ रूपए, 2006-07 में 859 करोड़ रूपए और 2007-08 में 930 करोड़ रूपए की राषि सिंचाई क्षमता विकसित करने के लिए रखी गई। हमने बड़े जलाशय, बांध आदि बनाने के लिए जो शासकीय प्रयास किए हैं, उससे अभी तक प्रदेष में 6 वृहद, 32 मध्यम और 2242 लघु सिंचाई योजनाएं पूर्ण की जा चुकी हैं। 5 वृहद, 7 मध्यम तथा 471 लघु योजनाएं निर्माणाधीन है।
राज्य में पेयजल की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना और राष्ट्रीय औसत से भी काफी अच्छी है। राष्ट्रीय औसत पर जहां प्रति हैण्ड पम्प पर 250 व्यक्ति आश्रित होते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में प्रति हैण्ड पम्प पर मात्र 88 लोग आश्रित हैं। राज्य की कुल 72 हजार 775 बसाहटों में से 66 हजार 877 बसाहटों में हैण्डपम्प लगा दिए गए हैं और शेष बसाहटों में भी जल्दी ही हैण्डपम्प सुविधा उपलब्ध करा दी जाएगी। इसी प्रकार प्रदेष के कुल 110 नगरीय निकायों में से 59 स्थानों पर जल प्रदाय योजनाएं पूर्ण की जा चुकी हैं, 41 पर प्रगति पर हैं और 10 योजनाएं विभिन्न कारणों से लम्बित हैं, जिनके समाधान हेतु प्रयास किए जा रहे हैं।
गिरता भू-जल स्तर
छत्तीसगढ़ में भू-जल स्तर में लगातार गिरावट आने के लिए बारिश कम होने के अलावा भी कई कारण जिम्मेदार हैं। शहरों में या जिन स्थानों पर जमीन की सतह को सीमेंट से पक्का कर दिया गया है, वहां पर जमीन के भीतर पानी जाने का रास्ता बंद कर दिया गया है। इसके अलावा प्लास्टिक, पॉलीथीन के बहुत ज्यादा इस्तेमाल के कारण भी जमीन की सतह से पानी भीतर जाने में बाधा आती है। नगरीय अपषिष्ट पदार्थों का अच्छा प्रबंधन नहीं होने के कारण यह समस्या गहराती है। प्लास्टिक तथा पॉलीथीन का उपयोग कर उसे चाहे जहां फेंक देने की प्रवृत्ति से जमीन की वाटर रिचार्जिंग क्षमता पर विपरीत असर पड़ा है। इससे स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं को भी जन्म मिला है। राज्य शासन का बहुत धन ऐसे रोगों की रोकथाम और उपचार में लगता है, जो प्रतिबंधित रासायनिक पदार्थों का उपयोग होने के कारण उत्पन्न होते हैं। इस संबंध में आम जनता में वांछित जागरूकता और तत्परता की कमी है।
पानी की समस्या का समाधान दो तरह से हो सकता है एक तो वर्षा का पानी बांधों में, जलाशय में रोककर या दूसरा जमीन में बोर खोदकर, उसमें हैण्डपम्प स्थापित कर। पानी के परिवहन की समस्या को देखते हुए बोर करना एक सरल उपाय है लेकिन इसमें निरंतर भू-जल स्तर गिरते जाने की गम्भीर समस्या भी है। ऐसी स्थिति में यदि हम पानी की उपलब्धता निरंतर बनाए रखना चाहते हैं तो बारिश के पानी को जमीन के भीतर जाने का प्रबंध करना सबसे ज्यादा जरूरी है। इसे ही वाटर रिचार्जिंग कहा जाता है।
भू-जल स्तर में गिरावट की समस्या रोकने के लिए बड़े पैमाने पर वाटर रिचार्जिंग की जरूरत है। शहरों में जहां आवासीय समस्या है, वहां घरों में खुला स्थान नहीं होने के कारण वाटर रिचार्जिंग के लिए बोर के साथ पानी नीचे भेजने का इंतजाम करना पड़ता है। शहरों में इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है। दूसरी ओर जिन लोगों के पास घर में रहने के स्थान के अलावा बगीचे की या अन्य कोई खुली जगह है उन्हें चाहिए कि वे सोक-पिट खुदवाएं और वर्षा जल को जमीन के भीतर भेजने का इंतजाम कराएं। जिनके पास खेती की जमीन है, वे भी अपने खेतों में बड़े गढ्ढे खोदकर उसमें पानी भरने दे। खेतों में जो पानी इकट्ठा होता है, वह ज्यादातर वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है। इससे जरूरत से काफी कम पानी जमीन के अंदर जा पाता है। खुले खेत की तुलना में गढ्ढों में भरा पानी जमीन की ज्यादा रिचार्जिंग कर पाता है और यही पानी फिर आपके खेत के नलकूप के काम भी आता है।
सब विभागों की प्राथमिकता पानी
मैंने राज्य सरकार के प्रत्येक संबंधित विभाग को पानी के लिए काम करने के निर्देष दिए हैं। शासकीय स्तर पर एनीकट बनाने का एक बड़ा अभियान छेड़ा गया है, जिसके तहत हम राज्य में करीब 595 एनीकट बना रहे हैं, जो तात्कालिक तौर पर निस्तार की समस्या का समाधान तो करेंगे साथ ही वाटर रिचार्जिंग में भी एक बड़ी भूमिका का निर्वाह करेंगे। जल संसाधन विकास विभाग के अलावा ग्रामीण विकास विभाग, वन विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, नगरीय विकास विभाग, राजस्व विभाग आदि सभी को मिलकर एक समन्वित कार्ययोजना बनाने को कहा है। जिससे शहरों तथा गांवों में खाली स्थानों पर वृक्षारोपण, नदी-तालाब के किनारों पर वृक्षारोपण, क्षतिपूरक वनीकरण आदि तरीकों से जमीन में पानी रोकने के इंतजाम किए जा सकें। तालाब गहरीकरण, कुओं, डबरी आदि जलसंसाधनों का विकास, मेड़बंधी के अलावा कन्टूर बन्डिंग, ट्रेन्च, फील्ड बन्डिंग जैसे कार्यों से भूमि सुधार के साथ वाटर रिचार्जिंग की व्यवस्था भी की जा सके। मिसाल के तौर पर हमने रोजगार गारंटी योजना का उपयोग भी जलग्रहण विस्तार और जलाशय के विकास के लिए व्यापक रणनीति बनाकर करने का निर्णय लिया है। सिर्फ बीते एक वर्ष में नए तालाब निर्माण, रिसन तालाब, लघु चेक-डेम आदि निर्माण से संबंधित 7623 कार्य मंजूर किए गए। लघु सिंचाई नहरों के 3586 कार्य मंजूर किए गए। इस तरह अन्य विभागों की योजनाओं और रोजगारपरक कार्यक्रमों में भी पानी से संबंधित काम प्राथमिकता से शामिल किए गए हैं।
प्रत्येक नागरिक की भागीदारी जरूरी
मैं सरकारी प्रयासों का ज्यादा उल्लेख इस लिए नहीं करना चाहता क्योंकि मैं चाहता हूं कि पानी बचाने को राज्य का प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी माने और वह इस ओर मत देखें की सरकार क्या कर रही है। मेरा मानना है कि सरकार चाहे जितना प्रयास कर ले आम आदमी के जागरूक हुए बिना अपेक्षित सफलता मिलना असम्भव है। छत्तीसगढ़ को आज भी नदियों और वर्षा जल का जो प्राकश्तिक उपहार प्राप्त है, उसे यदि हम बनाए रखना चाहते हैं तो व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करना ही होगा। मैं चाहूंगा कि राज्य में सभी स्थानीय निकायों के निर्वाचित पदाधिकारी पानी के काम को अपनी पहली प्राथमिकता मानें। पंचायतों और नगरीय निकायों के पदाधिकारी सीधे आम जनता से जुड़े होते हैं, इसलिए वे जनता के साथ जुड़ कर पानी बचाने और बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। राज्य में कार्यरत स्वयंसेवी संगठन, सामाजिक संगठन इस दिषा में काफी मदद कर सकते हैं। उद्योगपतियों को स्व-स्फूर्त होकर जल संसाधनों के विकास और वाटर रिचार्जिंग में योगदान देना चाहिए। जहां भी खुली-सुरक्षित जगह उपलब्ध हो, वहां कोई ऐसा जलाशय विकसित करना चाहिए, जिसका पानी जमीन के भीतर जाए। साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा, रासायनिक अपषिष्ट पदार्थों के सुरक्षित ढंग से निपटान पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि इनका असर पानी की शुध्दता पर नहीं हो पाए। वैसे भी पानी जब बहता है तो वह किसी तरह की राजनीतिक, सामाजिक सीमाओं को नहीं पहचानता, इसलिए पानी के लिए काम करना अपनी जिन्दगी के लिए काम करने जैसा है और इसके लिए सभी आपसी भेद समाप्त हो जाने चाहिए।
पानी का सही उपयोग भी एक कला
व्यक्तिगत प्रयासों के क्रम में मैं यह भी कहना चाहूंगा कि हमें पानी के उपयोग के युक्तियुक्त तरीके भी तलाषने चाहिए। कम से कम पानी के इस्तेमाल की विधियां उपयोग में लानी चाहिए। उपलब्ध पानी को बचाकर इस्तेमाल करने की कला सीखनी चाहिए। यह बात आदत से भी संबंधित है। पूर्व में अधिक पानी उपलब्ध होने के कारण आम लोगों को पानी बर्बाद करने की आदत-सी पड़ी हुई है। इसके लिए हम सबको यह सीखना चाहिए कि जितनी जरूरत है, उससे थोड़ा कम पानी ही लें।
एक आकलन है कि नल से लगातार प्रति सेकण्ड एक बूंद पानी टपकता रहे तो दिन भर में 15 लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है। जमीनी हकीकत ये है कि कई नलों पर टोटियां ही नहीं हैं, इससे पानी की भयंकर आपराधिक बर्बादी हो रही है। इसी तरह यदि नल खोलकर टब में नहाए तो प्रति व्यक्ति 25 लीटर पानी लगता है। और अगर बाल्टी से नहाए तो सिर्फ 18 लीटर यानी 7 लीटर पानी की बचत इससे होती है। नल खोलकर मंजन करने पर 10 लीटर पानी लगता है और अगर लोटे का उपयोग करें तो मात्र एक लीटर। इस तरह 9 लीटर पानी बच जाता है। वाहन को अगर चालू नल से धोएं तो 200 लीटर पानी लगता है और अगर गीले कपड़े से पोछा जाए तो 20 लीटर पानी लगता है। पाइप से फर्ष धोने से प्रति 1500 फीट के लिए 50 लीटर पानी लगता है और बाल्टी में पानी डालकर पोछा लगाने पर मात्र 17 लीटर पानी खर्च होता है। इसी तरह आदतों में सुधार से सैकड़ों लीटर पानी बचाया जा सकता है। यह छोटी-छोटी सावधानियां आपको बहुत बड़ी परेषानियों से बचा सकती हैं। आज आमतौर पर हम वर्ष में सिर्फ दो या तीन महीने पानी की गम्भीर समस्या झेल रहे हैं और नौ महीने मजे से बिता रहे हैं। राज्य के कुछ ही हिस्से ऐसे होंगे, जहां छह-सात महीने पानी की किल्लत होती होगी। लेकिन यह ध्यान में रखना अनिवार्य है कि अगर वाटर रिचार्जिंग के प्रति और ज्यादा पानी खर्च करने की आदत के प्रति हम और आप लापरवाह बने रहें तो लगभग नौ-दस माह पानी की गंभीर समस्या से जूझना पड़ सकता है। बढ़ती आबादी की बढ़ती जरूरतों के लिए सिर्फ शासन के प्रयासों पर निर्भर रहने से काम नहीं चलेगा और आज जो परिदृष्य दिखाई पड़ रहा है, उसमें तो ऐसा ही दिखता है कि जल संग्रह को सिर्फ शासन की जिम्मेदारी माना गया है। मुझे यह देखकर आष्चर्य होता है कि जिन स्थानों पर पहले 50-60 फीट पर पानी मिल जाता था, वहां अब 500-600 फीट गहराई में पानी मिलने लगा है। इस स्थिति से निपटने के लिए तत्काल सचेत होने और पानी के प्रति सम्मान की भावना विकसित करने की आवश्यकता है। हम सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझने, जल संरक्षण के उपायों के बारे में अपने ज्ञान को लगातार विकसित करने, नए-नए उपायों के सम्पर्क में रहने और उन्हें अपनाने की तत्परता दिखाने की जरूरत है। इस संबंध में आपस में चर्चा करना और पानी बचाने के लिए एक-दूसरे की मदद करना भी हम सबके लिए बहुत जरूरी हो गया है।
आलेख : डॉ. रमन सिंह
मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़
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