1996 में भाजपा संसद में सबसे बड़ा दल बनी जबकि कांग्रेस तब तक के इतिहास में अपनी न्यूनतम संख्या पर पहुँच गई। देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने भाजपा की पहली सरकार (16 मई से 31 मई, 1996 तक) के प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को नियुक्त किया। लेकिन, श्री वाजपेयी को प्रधानमंत्री के रूप में १३ दिन के न्यूनतम कार्यकाल तक भारत की सेवा करने के बाद अपने पद से त्यागपत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ा।
1998 में पुनः लोक सभा चुनाव हुए और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने एक साधारण बहुमत प्राप्त किया। श्री वाजपेयी दूसरी बार फिर प्रधानमंत्री बने। उनका यह कार्यकाल 19 मार्च, 1998 से 13 अक्तूबर, 1999 तक चला। अन्नाद्रमुक ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे पुनः चुनाव कराने की स्थिति आ गई। इस राजग सरकार ने प्रसार भारती अधिनियम को महत्वपूर्ण समर्थन दिया, जिससे सरकार के स्वामित्व वाले मीडिया चैनलों को अधिक स्वायत्तता प्राप्त हुई। 1998 में राजस्थान के पोखरण में 5 परमाणु परीक्षण कर वाजपेयी सरकार ने अपने एक चुनावी वादे को पूरा करते हुए भारत को अस्त्राधारित परमाणु क्षमता प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
13 अक्तूबर, 1999 को भाजपा नीत राजग ने 303 सीटों पर जीत प्राप्त की। भाजपा को अपनी तब तक की सर्वाधिक 183 सीटों पर जीत मिली। वाजपेयी अपने जीवन में तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तथा आडवाणी उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का कार्यभार ग्रहण किए।
सरकार ने सूचना प्रोद्योगिकी उद्योग की उन्नति पर विशेष ध्यान दिया तथा मध्यमवर्गीय भारतीयों और व्यापारियों पर लगने वाले करों को कम कर दिया। इस दौरान कृषि और औद्योगिक उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई और विदेशी व्यापर व निवेश में भी वृद्धि अंकित की गई। श्री वाजपेयी ने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, एक ऐसी सड़क प्रणाली जिसका उद्देश्य देश के चारों कोनों को बड़े व्यापारिक सड़कों के माध्यम से जोड़ना था, में व्यक्तिगत रूचि दिखाई। उनके शिक्षा कार्यक्रमों ने प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की संख्या में भारी वृद्धि लाने का काम किया। उन्होंने विद्यालयों की सहायता को विस्तार दिया तथा विद्यालयी शिक्षा में उत्तमता लाने हेतु आधुनिक तकनीकों के प्रयोग को प्रोत्साहित किया। वाजपेयी सरकार ने पाकिस्तान द्वारा छेड़ा गया छद्म युद्ध जीता और भारतीय सीमा ‘लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल’ पर खोई जमीन को पुनः प्राप्त किया।
सन 2002 में आतंकवादी गतिविधि निरोधी अधिनियम (पोटा) लाया गया, जिसने पुलिस अधिकारियों की शक्तियों में वृद्धि की और ख़ुफ़िया एजेंसियां विध्वंसक राजनीतिक गतिविधियों तथा आतंकवाद पर अंकुश लगाने में सफल हुईं। 13 दिसंबर, 2001 में संघीय संसद पर हुए आतंकी हमले की प्रतिक्रिया के रूप में मुख्यतः यह पोटा क़ानून प्रख्यापित किया गया था।