- published: 11 Oct 2017
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इस वीडियो में देखिये की कैसे भगवान कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए खड़े रहने को कहते है Don't forget to Share, Like & Comment on this video Subscribe Our Channel Artha : https://goo.gl/22PtcY १ इस पद में भगवान कृष्ण अर्जुन को पार्थ के नाम से पुकारते है और उसे यह बताते है की यह समय कमज़ोरी दिखाने के लिए उचित नहीं है 2 भगवान कृष्ण के इस तीसरे श्लोक के दिव्य शब्द हैं; क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ।।३।। ३ इस श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को परंतप के नाम से भी बुलाते है जिसका संदर्भ दंडक से है और जो एकाग्रता की शक्ति से शत्रुओं का विनाश कर देता है। ४ अर्जुन शत्रुओं को भयभीत करने और उनको परास्त करने में सक्षम था। परंतु उस क्षण, वह स्वयं भयभीत हो गया था और कुरुक्षेत्र से निकल जाना चाहता था ५ यह उसे शोभा नहीं दे रहा था ...
श्लोक ३, अध्याय २ क्लैब्यम्, मा, स्म, गमः, पार्थ, न, एतत्, त्वयि, उपपद्यते, क्षुद्रम् हृदयदौर्बल्यम्, त्यक्त्वा, उत्तिष्ठ, परन्तप।।3।। अनुवाद: (पार्थ) हे अर्जुन! (क्लैब्यम्) नपंुसकताको (मा, स्म, गमः) मत प्राप्त हो (त्वयि) तुझमें (एतत्) यह (न, उपपद्यते) उचित नहीं जान पड़ती। (परन्तप) हे परंतप! (क्षुद्रम् हृदयदौर्बल्यम्)हृदयकी तुच्छ दुर्बलताको (त्यक्त्वा) त्यागकर (उत्तिष्ठ) युद्धके लिये खड़ा हो जा।
It is unusual to find a recording sung by a native Sanskrit speaker from India; Vidya Rao's is perhaps the only such recording available. This chant is part of a collection recorded by Siddhartha's Intent, an organization dedicated to reviving the wisdom traditions of India. http://www.siddharthasintent.org/ प्रज्ञापारमिताहृदयसूत्रम्। [संक्षिप्तमातृका] ॥ नमः सर्वज्ञाय॥ ॥ ऊँ नमो भगवत्यै आर्य-प्रज्ञापारमितायै ॥ आर्यविलोकितेश्वरो बोधिसत्वो गम्भीरां प्रज्ञापारमिता-चर्या चरमाणो व्यवलोकयति स्म-पञ्च स्कन्धाः । तांश्च स्वभाव-शून्यान् पश्यति स्म॥ इह शारिपुत्र रूपं शून्यता, शून्यतैव रूपम्। रूपान्न पृथक् शून्यता, शून्यताया न पृथग् रूपम्। यद्रूपं सा शून्यता, या शून्यता तद्रूपम् । एवमेव वेदना-संज्ञा-संस्कार-विज्ञानं ॥ इहं शारिपुत्र सर्व धर्माः शून्यता, लक्षणा, अनुत्पन्ना, अनिरुद्धा, अमला विमला, अ...
Studio Sangeeta Presents - श्री शक्रादया स्तुति || Chandipath - Shakradaya Stuti || Album - Chandipath Vocals - Chorus Music Label - Studio Sangeeta Song - Shakradaya Stuti Lyrics - ऋषिरुवाच ॥ १॥ शक्रादयः सुरगणा निहतेऽतिवीर्ये तस्मिन्दुरात्मनि सुरारिबले च देव्या । तां तुष्टुवुः प्रणतिनम्रशिरोधरांसा वाग्भिः प्रहर्षपुलकोद्गमचारुदेहाः ॥ २॥ देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या । तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ॥ ३॥ यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च । सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥ ४॥ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः । श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम...
Complete Course details and materials can be found at below URL http://sanskrit.today/sanskrit-gita-sopanam-1/ This video contents: २१ - श्वः कस्य जयः ? २२ - किमकुर्वत सञ्जय ? क्तवतुप्रत्ययान्त-भूतकालः लङ्लकार-भूतकालः स्म Page Nos: 74-80
Powerful Mantra for Global Security (विश्व रक्षा मंत्र ) LYRICS: ya shreeha svayam sukritinaam bhavaneshvalakshmeeh paapaatmanaam kritadhiyaam hridayeshu buddhih | shraddhaa sataam kulajana prabhavasya lajjaa taam tvaam nataah sma paripaalaya devi vishvam || या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेश्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः | श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि ! विश्वम् || Track: Vishwa Raksha Mantra (for Global Security) Artist: Jitender Singh Album: Moksha - 25 Mantras for Health, Happiness and Prosperity Download links: http://itunes.apple.com/us/album/moksha-25-mantras-for-health/id528378893 http://www.amazon.com/gp/product/B00859ZUBM/ http://www.amazon.co.uk/gp/product/B0085FN3O2/ https://play.google.com/store/search?q=Jitender+Singh+...
प्रज्ञा-परिमिता-हृदय-सूत्र || नमः सर्वज्ञाय || आर्यावलोकितेश्वर बोधिसत्त्वो गम्भीरायां प्रज्ञांपारमितायां चर्यां चरमाणो व्यवलोकयति स्म| पंच स्कन्धा:ताम्श्चा स्वभावशून्यान्पश्यति स्म || इह शारिपुत्र रूपं शून्यता शून्यतैव रूपं| रूपान्न पृथक् शून्यता शून्यताया न पृथग्रूपं| यद्रूपं सा शून्यता या शून्यता तद्रूपं || एवमेव वेदानासंज्ञा संस्कार विज्ञानानि || इहं शरिपुत्र सर्वधर्माः शून्यतालक्षणा अनुत्पन्ना अनिरुद्धा अमला विमलानोना न परिपूर्णः | तस्माच्छारिपुत्र शून्यतायाम नरूपं नवेदना नसंज्ञा नसंस्कारा नविज्ञानानी | न चक्षुः श्रोत्र घ्राण जिह्वा कायमनाम्सि ना रुपशब्दगन्धरस स्पर्श्तव्य धर्मः | न चक्षुर्धातुरर्यावन्ना मनोविज्ञानधातुः || न विद्या नाविद्या नविद्याक्षयो नविद्याक्षयो यावन्ना जरामरणं ना जरामरणक्षयो न दुःखसमुदयनिरोधमार्गा नज्ञानानां न प्रप्तिर्नाप्रप्ति: || बोधिसत्त्वस्य(श्चा?) प्रज्ञापा...