शरीया

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मुस्लिम शादियों में निकाह-नामा शरीया क़ानून द्वारा अपेक्षित होता है

शरीया (अरबी: شريعة‎, अंग्रेज़ी: sharia), जिसे शरीया क़ानून और इस्लामी क़ानून भी कहा जाता है, इस्लाम में धार्मिक क़ानून का नाम है। इस क़ानून की परिभाषा दो स्रोतों से होती है। पहली इस्लाम का धर्मग्रन्थ क़ुरान है और दूसरा इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा दी गई मिसालें हैं (जिन्हें सुन्नाह कहा जाता है)। इस्लामी क़ानून को बनाने के लिए इन दो स्रोतों को ध्यान से देखकर नियम बनाए जाते हैं। इस क़ानून बनाने की प्रक्रिया को 'फ़िक़्ह' (فقه‎, fiqh) कहा जाता है। शरीया में बहुत से विषयों पर मत है, जैसे कि स्वास्थ्य, खानपान, पूजा विधि, व्रत विधि, विवाह, जुर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था इत्यादि।[1]

मुस्लिम यह तो मानते हैं कि शरीया परमात्मा का क़ानून है लेकिन उनमें इस बात को लेकर बहुत अंतर है कि यह क़ानून कैसे परिभाषित और लागू होना चाहिए। सुन्नी समुदाय में चार भिन्न फ़िक़्ह के नज़रिए हैं और शिया समुदाय में दो। अलग देशों, समुदायों और संस्कृतियों में भी शरीया को अलग-अलग ढंगों से समझा जाता है। शरीया के अनुसार न्याय करने वाले पारम्परिक न्यायाधीशों को 'क़ाज़ी' कहा जाता है। कुछ स्थानों पर 'इमाम' भी न्यायाधीशों का काम करते हैं लेकिन अन्य जगहों पर उनका काम केवल अध्ययन करना-कराना और धार्मिक नेता होना है।[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Sharia - The Islamic Law, Corinna Standke, GRIN Verlag, 2008, ISBN 978-3-640-14967-4
  2. The Legacy of Solomon, Lulu.com, ISBN 978-2-9527158-4-3, ... Our imams are prayer leaders, but if fact any respectable Muslim can lead the prayers. The muftis interpret laws of the Sharia whilst the Qazi or Kadi applies the Sharia ...