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गणित में, 1 − 2 + 3 − 4 + · · · एक अनन्त श्रेणी है जिसके व्यंजक क्रमानुगत धनात्मक संख्याएं होती हैं जिसके एकांतर चिह्न होते हैं। अनन्त श्रेणी के अपसरण का मतलब यह है कि इसके आंशिक योग का अनुक्रम (1, −1, 2, −2, ...) किसी परिमित मान की ओर अग्रसर नहीं होता है। बहरहाल, 18वीं शताब्दी के मध्य में लियोनार्ड आयलर1 − 2 + 3 − 4 + · · · = 1⁄4 बताया। दशक 1980 के पूर्वार्द्ध में अर्नेस्टो सिसैरा, एमिल बोरेल तथा अन्यों ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए सुपरिभाषित विधि प्रदान की – जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा 1 − 2 + 3 − 4 + · · · का "योग" 1⁄4 लिख सकते हैं। सिसैरा-संकलन उन विधियों में से एक है जो 1 − 2 + 3 − 4 + ... का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा एबल संकलन विधि की आवश्यकता होती है। (विस्तार से पढ़ें...)
शैलेश मटियानी (१४ अक्तूबर१९३१-२४ अप्रैल२००१) का जन्म अल्मोड़ा के बाड़ेछीना गांव में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था तथा आरंभिक वर्षों में वे रमेश मटियानी 'शैलेश' नाम से लिखा करते थे। लेखक बनने की उनकी इच्छा बड़ी जिजीविषापूर्ण थी। १९९२ में कुमाऊं विश्वविद्यालय ने उन्हें डी० लिट० की मानद उपाधि से सम्मानित किया। जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए। विक्षिप्तता की स्थिति में उनकी मृत्यु दिल्ली के शहादरा अस्पताल में हुई। इनकी प्रमुख कृतियों में महाभोज, चील, प्यास और पत्थर, कहानी संग्रह; हौलदार, चिट्ठी रसेन उपन्यास और जनता और साहित्य, यथा प्रसंग, कभी-कभार निबंध हैं। मटियानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, देवरिया केडिया सम्मान, साधना सम्मान और लोहिया सम्मान दिया गया। उनकी कृतियों के कालजयी महत्व को देखते हुए प्रेमचंद के बाद मटियानी का नाम लिया जाता है। विस्तार में...