[Maithili Vidyapati Song] Bar Sukh Saar
[
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Bar Sukh
Saar [
Singer :
Rajni Pallavi ]
A
Maithili Vidyapati's
Geet
This song is penned by great maithili poet Mahakavi Vidyapati.
सुधि श्रोतागण, अपने लोकनिक समक्ष महाकवि
विद्यापतिक अंतिम गीत प्रस्तुत क' रहल छी । "गंगा स्तुति" महाकविक अंतिम रचना छनि । "बर सुख सार पाओल तुअ तीरे", मिथिलाक जन जन मे लोक प्रिय अछि । गंगा स्तुति महाकवि गंगाक तट पर कल्पवास करबाक अपन अंतिम समय मे रचना केलनि । एहि गीतक रचनाक बर कथा सुनल जाइत छैक मुदा महाकवि
क लिखल पद प्रामाणिक छैक -
सपना देखल हम सिव
सिंह भूप, बतीस बरख पर सामर रूप ।
बहुत देखल गुरुजन प्राचीन, आब भेलहुँ हम आयु
विहीन ।
समटु समटु नीज लोचन नीर, ककरहु
काल न राखथि थीर ।
विद्यापति सुगतिक प्रस्ताव, त्
याग कए करुणा रसक स्वभाव ।
अर्थात बतीस बरख पर राजा सिव सिंहक श्यामल रूप हम सपना में देखल । बहुत अपन पुरखा आ गुरुजन सभ क'
सेहो देखलौ । आहाँ सभ कियैक कनैत छी, अपन अपन नोर क' रोकू, के
करो काल स्थिर रखैत छैक? विद्यापति कहैत छथि जे ई त'
सुन्दर गति भेटबाक प्रस्ताव थीक । तैं आहाँ लोकनि एहि शोकक परित्याग करैत जाउ ।
महाकवि क'अंतिम समय मे ज्ञान भ' गेलनि तैं ओ गंगाक पवित्र तट पर कल्पवास करय पहुँचलाह आ शरीर त्याग करबा सं पहिने गंगा स्तुतिक रचना केलनि ।
भवार्थ
हे माँ गंगे, अहाँक तट पर बर सुख भेटल । मुदा आइ संग छोरैत आँखि सं अविरल नोर खसि रहल अछि । हम
क'ल जोरि अहाँक प्रणाम करैत छी हे विमल तरंग बाली माँ गंगे । हमर इच्छा अछि जे संग छुटलाक बादो अहाँक दर्शन होयत रहय । हँ, हमरा सं एकटा अपराध भ' गेल अछि, ते
करा क्षमा क' देब माँ । हमर पायर अहांक जलक स्पर्श केलक अछि । हम जप तप, जोग ध्यान की करब, जीबन सुफल भ' जाइत मात्र एकहि
स्नान सं । विद्यापति कहैत छथि जे हे माँ गंगे! आइ जायत काल हम बिछोहक पद अर्थात समदाउन
सूना रहल छी जे जीबनक एहि अंत काल मे बिसरि नहि जायब ।
विद्यापतिक ई अंतिम गीत छनि । एकर बाद ओ परमधाम चलि गेलाह । ओ अपने लिखने छथि,
"विद्यापति आयु अवसान, कार्तिक धवल त्रयोदसि जान ।"
सुधि पाठक एबं श्रोतागण
सं निवेदन, एहि गीतक रसस्वादन क' हमरो अपन मत लिखि पठाबी जाहि सं अगर कोनो त्रुटि हेतैक त' ओहि क' निवारण कएल जा सकैक ।
रजनी पल्लवी
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